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"आस्था का पर्व: चैती छठ व्रत का सनातन धर्म में महत्व और इसकी आध्यात्मिक महिमा"

"सूर्य देव की उपासना और छठी मइया के व्रत से जुड़ी सनातन परंपरा का प्रतीक चैती छठ, क्यों मनाया जाता है यह पावन पर्व?"

आस्था, संयम और सूर्य उपासना का पर्व — चैती छठ, 2025 में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व साल में दो बार आता है: पहला कार्तिक मास में और दूसरा चैत्र मास में, जिसे 'चैती छठ' कहा जाता है।

🌅 क्या है चैती छठ?

चैती छठ, सूर्य देव और छठी मइया को समर्पित चार दिवसीय पर्व है। यह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 2025 के अप्रैल महीने में मनाया जा रहा है।

यह पर्व खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई इलाकों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। आजकल इसकी महिमा देश-विदेश तक फैल चुकी है।

🌞 सनातन धर्म में इसका महत्व:

  1. सूर्य देव की उपासना:
    सूर्य, हिन्दू धर्म में प्रत्यक्ष देवता माने जाते हैं। वे जीवन, ऊर्जा, स्वास्थ्य और आरोग्यता के स्रोत हैं। छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देकर व्यक्ति उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है।
  2. छठी मइया की पूजा:
    छठी मइया को शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। वे संतान सुख, आरोग्यता और पारिवारिक कल्याण का वरदान देती हैं।
  3. शुद्धता और संयम का पर्व:
    इस व्रत में व्रती पूरी तरह से शुद्ध आचरण, सात्विक भोजन और तप का पालन करते हैं। यह शरीर और आत्मा की शुद्धि का पर्व है।
  4. विज्ञान और प्रकृति के साथ संतुलन:
    सूर्योपासना स्वास्थ्यवर्धक भी है। प्रात: और संध्या सूर्य को अर्घ्य देने से विटामिन D मिलता है और मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।

🪷 चार दिवसीय व्रत की प्रक्रिया:

  1. पहला दिन – नहाय खाय:
    व्रती स्नान करके सात्विक भोजन करते हैं। शरीर और मन को शुद्ध किया जाता है।
  2. दूसरा दिन – खरना:
    इस दिन व्रती दिनभर उपवास करके शाम को गुड़ और चावल की खीर बनाकर पूजा करते हैं और फिर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।
  3. तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य:
    व्रती जलाशय के किनारे सूर्यास्त के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
  4. चौथा दिन – प्रातः अर्घ्य (उदीयमान सूर्य को अर्घ्य):
    अगले दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करते हैं।

🙏 धार्मिक मान्यता:

  • भगवान श्रीराम और माता सीता: माना जाता है कि अयोध्या वापसी के बाद राम-सीता ने सूर्य की पूजा की थी। उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए यह व्रत प्रचलित हुआ।
  • महाभारत काल: कुन्ती ने भी सूर्य की उपासना की थी जिससे कर्ण का जन्म हुआ। कर्ण प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देते थे।

🌍 आज के समय में चैती छठ का सामाजिक महत्व:

  • सांस्कृतिक एकता का प्रतीक: यह पर्व जाति, वर्ग, लिंग और आर्थिक स्थिति से ऊपर उठकर सबको एक सूत्र में बाँधता है।
  • स्वास्थ्य और पर्यावरण चेतना: व्रती जल स्रोतों की सफाई करते हैं, पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाते हैं।

📢 निष्कर्ष:

चैती छठ केवल एक पर्व नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की वैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक चेतना का समागम है। यह पर्व सिखाता है कि संयम, श्रद्धा और प्रकृति के साथ जुड़ाव से जीवन में सकारात्मकता आती है।

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"आस्था का पर्व: चैती छठ व्रत का सनातन धर्म में महत्व और इसकी आध्यात्मिक महिमा"
YHT24X7NEWS, PAWAN MAHATO 4 April 2025
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