मथुरा-वृंदावन में शराब दुकान बंद कराने की घटना के बाद वायरल हुए वीडियो ने गौरक्षक और स्वयंघोषित एक्टिविस्ट दक्ष चौधरी को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। जहां एक तरफ पुलिस ने उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है, वहीं दूसरी ओर समर्थकों ने कोतवाली का घेराव कर उनके समर्थन में जोरदार प्रदर्शन किया।
लेकिन यह कहानी सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। यह उस बड़े सवाल का हिस्सा भी है जिसके बारे में आज शायद ही कोई बात कर रहा है—
“हिंदू और हिंदुत्व की आवाज़ बुलंद करने वाले चेहरे अचानक चुप क्यों हो जाते हैं?”
🔥 दक्ष चौधरी कौन हैं और मामला क्या है?
▶ शराब दुकान बंद कराने की घटना
वृंदावन में एक शराब की दुकान को “धर्म नगरी की मर्यादा” बताते हुए जबरन बंद कराने की कोशिश का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें दक्ष चौधरी अपने साथियों—अभिषेक ठाकुर, शिब्बो कपिल और अक्कू पंडित—के साथ दिखे।
पुलिस ने राजस्व हानि और कानून हाथ में लेने के आरोप में सभी को गिरफ्तार किया।
▶ गिरफ्तारी के बाद बवाल
दक्ष के समर्थकों ने वृंदावन कोतवाली का घेराव कर कार्रवाई को “झूठा केस” बताया और रिहाई की मांग की।
▶ कन्हैया कुमार को थप्पड़ क्यों मारा था?
चुनाव प्रचार के दौरान दक्ष चौधरी ने कन्हैया कुमार को थप्पड़ मारा था।
कारण:
कन्हैया के “देशविरोधी नारों” और कथित रूप से हिंदू आस्था का अपमान करने वाले बयानों को लेकर दक्ष चौधरी नाराज़ थे।
इस घटना के बाद भी उन्हें हिरासत में लिया गया था।
▶ अयोध्या के लोगों को गाली देने का विवाद
हाल ही में दक्ष का एक वीडियो भी सामने आया जिसमें उन्होंने अयोध्या के लोगों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की। इस मामले में भी पुलिस द्वारा कार्रवाई की गई।
🧩 बड़ा सवाल: हिंदुत्व की आवाज़ उठाने वाले चेहरे अचानक खामोश क्यों?
दक्ष चौधरी का मामला सिर्फ कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि एक ट्रेंड को उजागर करता है—
“हिंदू, गौरक्षा या हिंदुत्व की आवाज़ उठाने वाले कई चेहरे समय के साथ गायब या खामोश क्यों हो जाते हैं?”
ये कुछ नाम हैं जो कभी सुर्खियों में रहते थे:
🔹 पायल रोहतगी
हिंदू मुद्दों पर बेबाक बोलने वाली पायल अब पहले जैसी एक्टिव नहीं दिखतीं। कानूनी विवाद, सोशल मीडिया बैन और बार-बार FIR होने के बाद उनकी आवाज़ धीरे-धीरे धीमी हो गई।
🔹 प्रवीण ठाकुर
कई सनातन मुद्दों को उठाने वाले प्रवीण ठाकुर पर लगातार मुकदमे दर्ज हुए। दबाव, परिवारिक जोखिम और सिस्टम की सख्ती उनकी चुप्पी का कारण माने जाते हैं।
🔹 वसीम रिज़वी उर्फ़ जितेंद्र त्यागी
इस्लाम छोड़ सनातन अपनाने के बाद चर्चा में आए, लेकिन फिर उनके खिलाफ कई केस, गिरफ्तारी और कोर्ट प्रक्रियाओं ने उन्हें सार्वजनिक तौर पर सक्रिय रहने से रोका।
⚠ क्यों चुप होते जाते हैं ऐसे चेहरे? असली कारण
1️⃣ लगातार कानूनी कार्रवाई और FIR का डर
कई एक्टिविस्टों के खिलाफ एक के बाद एक केस दर्ज होते हैं।
कानूनी जंग लंबी और खर्चीली होती है—कई लोग पीछे हट जाते हैं।
2️⃣ सोशल मीडिया दबाव व अकाउंट सस्पेंशन
बेबाक बयान देने वालों पर बार-बार रिपोर्टिंग और बैन लग जाते हैं।
3️⃣ पारिवारिक और सामाजिक दबाव
बढ़ते विवादों और पुलिस-प्रशासन की नजरों से परिवार परेशान होकर पीछे हटने को मजबूर करता है।
4️⃣ राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल और बाद में किनारा
कुछ को एक समय राजनीतिक धड़ों द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन बाद में उन्हें अकेला छोड़ दिया जाता है।
5️⃣ प्रशासनिक कड़ाई
सरकारें अब ऐसे मामलों को “क़ानून और व्यवस्था” के नजरिये से सख्ती से लेती हैं, जिससे कई एक्टिविस्टों का डर बढ़ता है।
📝 निष्कर्ष
दक्ष चौधरी का मामला सिर्फ एक शराब दुकान बंद कराने की घटना या कन्हैया कुमार को थप्पड़ मारने भर का मुद्दा नहीं है।
यह उस बड़े पैटर्न का हिस्सा है जिसे समझना जरूरी है—