“दुलारचंद यादव की मौत से उठे सवाल : यादव बनाम धानुक या राजनीतिक गैंगवार?”
- बाहुबली कल्चर और मोकामा टाल की राजनीति का इतिहास
- 80-90 के दशक में हथियार, रंगदारी और जमीन विवादों से पहचान
- लालू यादव से जुड़ाव और RJD काल में प्रभाव
- लोकदल से चुनाव और अनंत सिंह परिवार से टकराव
- गिरफ्तारी, छवि और “कुख्यात गैंगस्टर” का टैग
- 2022 उपचुनाव और नीलम देवी समर्थन विवाद
- जन सुराज कैंपेन की पृष्ठभूमि
- हत्या की घटना – आरोप किस पर और तनाव क्यों?
- सोशल मीडिया नैरेटिव : “यादव vs भूमिहार” या राजनीतिक मोड़?
- पीयूष प्रियदर्शी पटेल – धानुक फैक्टर और जातीय भ्रम
- मीडिया नैरेटिव सेट करने की कोशिश? (गोदी मीडिया आरोप)
- दुलारचंद : “अपराधी या समाजवादी नायक?” – दो ध्रुवों की बहस
- निष्कर्ष : बिहार की बाहुबली राजनीति फिर चर्चा में
दुलारचंद यादव : आपराधिक इतिहास
दुलारचंद यादव मोकामा टाल क्षेत्र के उन नामों में गिने जाते हैं, जिनकी पहचान 1980 और 1990 के दशक में बाहुबली के रूप में बनी।
टाल इलाके में अवैध खनन, ज़मीन कब्ज़ा, रंगदारी और हथियारबंद संघर्ष उन दिनों आम थे — और इसी क्रिमिनल बैकग्राउंड से दुलारचंद उभरे।
मुख्य आपराधिक प्रोफ़ाइल जो उनके नाम जुड़ती रही :
- हत्या के कई पुराने मुक़दमे
- अपहरण और फिरौती के केस
- रंगदारी / वसूली की शिकायतें
- ज़मीन कब्ज़ा और टाल क्षेत्र में दबदबा
- आर्म्स एक्ट से जुड़े मामले
पटना पुलिस ने भी 2019 में उन्हें “कुख्यात” टैग देते हुए गिरफ्तार किया था।
उनका नाम टाल इलाके में राइफ़ल और हथियारों के दम पर प्रभाव बनाने वाले गिरोहों में शामिल माना जाता था।

राजनीतिक परिचय
क्राइम बैकग्राउंड के साथ वे धीरे-धीरे राजनीति में आए।
मोकामा टाल में “भूमिहार बनाम यादव बाहुबली संघर्ष” का दौर जिस समय चरम पर था — दुलारचंद यादव उसी समय उभरे।
मुख्य राजनीतिक बिंदु —
- लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में RJD से निकटता बढ़ी
- राजनीति में एंट्री के साथ प्रशासनिक सुरक्षा और प्रभाव बढ़ा
- लोकदल से चुनाव भी लड़ा — पर अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह से मामूली अंतर से हार हुए
- बाद में टाल छोड़कर बाढ़ शहर को अपना राजनीतिक बेस बनाया
- 2022 मोकामा उपचुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को समर्थन दिया
- अंत समय में वे जन सुराज (प्रशांत किशोर) के प्रचार से जुड़े रहे
निष्कर्ष
दुलारचंद यादव का करियर “बाहुबली से नेता” वाली बिहार की पुरानी राजनीति का क्लासिक उदाहरण माना जाता है।
एक ओर यादव समाज में उनकी पकड़ और समर्थकों की भावनात्मक पहचान थी —
दूसरी ओर अपराध, हत्या और दबंगई की छवि भी उतनी ही मजबूत रही।
उनकी हाल की हत्या ने फिर वही सवाल उठाए —
बिहार की राजनीति में शक्ति, जाति और अपराध — अभी भी कितनी गहराई में मौजूद है?
दुलारचंद यादव की हत्या में कन्फ्यूजन क्यों?
कन्फ्यूजन इसलिए है क्योंकि —
एक ही घटना पर तीन अलग-अलग नैरेटिव चल रहे हैं।
- पुलिस की लाइन अलग जा रही है
- मीडिया अलग एंगल बना रही है
- राजनीतिक कैंप अपने-अपने हिसाब से बयान मोड़ रहे हैं
यानी —
हत्या किसने की — इरादा किसका था — और असली टारगेट कौन था — यह तीनों लाइनें मैच नहीं कर रहीं।
1) पोते (Family side) का बयान – “दादा नहीं… टारगेट पीयूष थे”
परिवार का दावा है कि:
- हमला असल में पीयूष प्रियदर्शी पर हो रहा था
- दुलारचंद यादव बीच में जाकर बचाने की कोशिश में मारे गए
- दुलारचंद को सीधे टारगेट नहीं किया गया था
- वे 80 साल के बुज़ुर्ग थे — सामने से कोई हिम्मत नहीं करता
यानी परिवार —
हत्यारों का MOTIVE = पीयूष पर हमला बता रहा है।
2) पीयूष प्रियदर्शी का बयान – “हमारे प्रचार पर हमला हुआ – दुलारचंद ने बचाया”
पीयूष प्रियदर्शी (धानुक) का नैरेटिव भी लगभग इसी लाइन पर है:
- उनका कहना है कि प्रचार के दौरान उनके ऊपर अचानक हमला हुआ
- दुलारचंद यादव बीच में आए और उनको बचाते हुए वार झेल लिए
- “यह जातीय यादव बनाम भूमिहार वाला मामला नहीं — यह स्थानीय राजनीतिक रंजिश है”
यानी पीयूष favorite angle =
political rivalry, not caste war
3) अनंत सिंह कैंप / समर्थकों की लाइन – “हमको फँसाया जा रहा है”
अनंत सिंह के लोग / समर्थक कह रहे हैं:
- यह हत्या हमसे जोड़कर politically trap करने की कोशिश है
- पुरानी रंजिशों को बिना जाँच के मीडिया में हमारे नाम से जोड़ दिया जा रहा है
- “हमारे लोग नहीं — किसी तीसरे गैंग का एंगल छुपाया जा रहा है”
मतलब अनंत सिंह camp —
accusation counter कर रहा है
और Responsibility deny कर रहा है।
सार
| पक्ष | क्या कह रहा है |
| पोता / परिवार | टारगेट = पीयूष, दादा बीच में आए |
| पीयूष प्रियदर्शी | हमला प्रचार पर हुआ, दुलारचंद ने बचाया |
| अनंत सिंह camp | हमें फँसाया जा रहा है, आरोप गलत |
यही तीन अलग-अलग नैरेटिव इस केस को अभी भी “कन्फ्यूज़न / क्लैश ऑफ स्टोरीज़” बना रहे हैं।
जब तक वीडियो फुटेज, FIR और फोरेंसिक सामने नहीं आते – सच कौन सा है, यही असली सवाल बना हुआ है।
दुलारचंद यादव के पोते का बयान
दुलारचंद यादव के पोते का कहना है कि —
दुलारचंद यादव उस समय RJD के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे।
पोते के अनुसार उस दिन की घटना RJD कैंपेन के दौरान हुई और
हमला असल में पीयूष पर था, दुलारचंद उन्हें बचाने गए और वार लग गया।
पोते की लाइन का key point:
“दादा RJD का प्रचार कर रहे थे — हमला हम पर / पीयूष पर हुआ था, दादा बचाने गए और चोट लग गई।”
पीयूष प्रियदर्शी का बयान
पीयूष प्रियदर्शी का बयान बिल्कुल दूसरी दिशा में है।
पीयूष कहते हैं कि उस समय जन सुराज (प्रशांत किशोर) का प्रचार हो रहा था
और उसी दौरान विरोधी पक्ष ने हमला किया।
पीयूष की लाइन का key point:
“हम जन सुराज कैंपेन में थे — प्रचार के दौरान हमला हुआ — दुलारचंद जी ने हमें बचाते हुए वार झेला।”
| व्यक्ति | किस पार्टी के प्रचार वाली लाइन बोल रहा है |
| पोता | “दादा RJD प्रचारे पर थे।” |
| पीयूष प्रियदर्शी | “हम जन सुराज प्रचार पर थे।” |
यही “प्रचार किसका था?” वाला बयान-अन्तर
इस केस का सबसे बड़ा confusion point बन गया है।






