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💥 EWS आरक्षण आंदोलन: सामान्य वर्ग का जीना दुश्वार? जानें करणी सेना की 21 बड़ी माँगे

करणी सेना परिवार के नेतृत्व में सामान्य वर्ग ने उठाई 21 सूत्रीय माँगें; कहा - आरक्षण जाति नहीं, अब केवल आर्थिक आधार पर हो लागू।

ईडब्ल्यूएस आरक्षण: सामान्य वर्ग का महाआंदोलन! जाति नहीं, अब 'आर्थिक न्याय' की माँग

भोपाल/दिल्ली: देश में आरक्षण की व्यवस्था पर लंबे समय से चली आ रही बहस अब एक निर्णायक मोड़ पर आ पहुँची है। ईडब्ल्यूएस (Economically Weaker Section) आरक्षण को लेकर मध्य प्रदेश में करणी सेना परिवार और अन्य सवर्ण/सामान्य वर्ग के संगठनों द्वारा किया गया विशाल आंदोलन केवल 10% आरक्षण की बात नहीं है, बल्कि यह देश में आरक्षण के मूल सिद्धांत को बदलने की माँग है। सामान्य वर्ग ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अब आर्थिक न्याय के लिए संगठित हो चुका है।

यहाँ इस आंदोलन के प्रमुख घटनाक्रम, माँगों का विस्तृत विश्लेषण और सामान्य वर्ग के जीवन पर आरक्षण के प्रभाव पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत है:

भाग 1: आंदोलन का घटनाक्रम और प्रमुख माँगें (Key Developments and Demands)

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का जंबूरी मैदान इस ऐतिहासिक आंदोलन का साक्षी बना। हज़ारों की संख्या में जुटे सामान्य वर्ग के लोगों ने अपनी 21 सूत्रीय माँगें सरकार के सामने रखीं।

1. आंदोलन की प्रमुख माँगें (Major Demands)

क्रममाँग का विवरणआंदोलनकारियों का तर्क
1.आरक्षण का आधार केवल आर्थिक हो।जातिगत आरक्षण समाप्त कर, केवल आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण दिया जाए ताकि सही गरीब को लाभ मिले।
2.ईडब्ल्यूएस मानदंड में सुधार।₹8 लाख की आय सीमा बहुत अधिक है। इसे घटाकर ₹4 लाख से ₹5 लाख तक किया जाए। साथ ही, संपत्ति (जैसे 5 एकड़ कृषि भूमि) के नियमों को समाप्त किया जाए।
3.आरक्षण की 50% सीमा का पालन।क्रीमी लेयर को हटाकर, आरक्षण को किसी भी स्थिति में 50% से अधिक न बढ़ाया जाए।
4.एससी/एसटी एक्ट में संशोधन।बिना जाँच के गिरफ़्तारी (Arrest without investigation) के प्रावधान को समाप्त किया जाए और दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाएँ।
5.सरकारी भर्तियों की पेंडेंसी समाप्त हो।रुकी हुई भर्तियों को तुरंत पूरा किया जाए और ईडब्ल्यूएस कोटे के बैकलॉग पदों को भरा जाए।

भाग 2: आंदोलन के प्रमुख वक्ता और उनके वक्तव्य (Speakers and Their Powerful Statements)

इस आंदोलन को करणी सेना परिवार के प्रमुख और अन्य सवर्ण नेताओं ने नेतृत्व दिया। उनके वक्तव्यों ने आंदोलन की दिशा और दशा स्पष्ट की।

प्रमुख वक्ता (List of Speakers)

  1. जीवन सिंह शेरपुर: (करणी सेना परिवार प्रमुख)
  2. धर्मेंद्र सिंह: (सामान्य वर्ग संघर्ष समिति प्रतिनिधि)
  3. महिला प्रतिनिधि: (आंदोलन की महिला विंग)
  4. छात्र नेता: (युवा और छात्र विंग)

वक्ताओं के मुख्य वक्तव्य (Detailed Discussion on Statements)

वक्तावक्तव्य की मुख्य भावनाउद्धरण (Quote Focus)
जीवन सिंह शेरपुरआरक्षण नीति पर सीधा हमला और चेतावनी। उन्होंने स्पष्ट किया कि सामान्य वर्ग के साथ हो रहे आर्थिक अन्याय को अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।"हम अब 'माँग' नहीं, बल्कि अपना 'हक़' लेने आए हैं। आरक्षण जाति के आधार पर नहीं, रोटी के आधार पर होना चाहिए। अगर हमारी माँगें नहीं मानी गईं, तो यह आंदोलन हर राज्य में जंगल की आग की तरह फैलेगा।"
धर्मेंद्र सिंहईडब्ल्यूएस मानदंड की आलोचना और संवैधानिक तर्क। उन्होंने ₹8 लाख की आय सीमा को क्रीमी लेयर के समान बताकर वास्तविक गरीबों के साथ धोखा बताया।"₹8 लाख में कौन गरीब होता है? यह केवल कागजी खानापूर्ति है। सरकार वास्तविक गरीबी को देखे। संवैधानिक मर्यादा का पालन हो और 50% से ज़्यादा आरक्षण देश के संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।"
महिला प्रतिनिधिघरेलू और सामाजिक आर्थिक संकट पर ज़ोर। उन्होंने बताया कि कैसे नौकरियों में आरक्षण न मिलने से सामान्य वर्ग के परिवारों पर दोहरी मार पड़ रही है।"हमारे बच्चों को मेरिट होने के बावजूद नौकरी नहीं मिलती। आर्थिक स्थिति बिगड़ने से घर का चूल्हा मुश्किल से जल रहा है। सरकार हमारी माताओं और बहनों की पीड़ा को समझे।"
छात्र नेतायुवाओं में निराशा और पलायन का मुद्दा। उन्होंने बताया कि प्रतिभाशाली युवा देश छोड़कर विदेश जा रहे हैं क्योंकि उन्हें यहाँ योग्यता के बावजूद अवसर नहीं मिल रहा है।"हम मेरिट में आने के बाद भी पिछड़ जाते हैं। टैलेंट को दंडित किया जा रहा है। यदि हमें देश में मौका नहीं मिला, तो हमारे पास पलायन के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा।"

भाग 3: विशेष लेख: सामान्य वर्ग का दूभर जीवन (An Article on the Struggles of the General Category)

"आरक्षण की चौखट पर टूटती मेरिट: जब सामान्य वर्ग का जीना हो जाता है दुश्वार"

भारत की स्वतंत्रता के बाद आरक्षण को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए एक अस्थायी उपाय के रूप में लागू किया गया था। लेकिन दशकों बाद, यह व्यवस्था एक स्थायी राजनीतिक उपकरण बन गई है। इसका सबसे बुरा खामियाजा उस सामान्य वर्ग को भुगतना पड़ रहा है, जिसमें भारी संख्या में आर्थिक रूप से कमजोर लोग शामिल हैं।

सामान्य वर्ग के जीवन की चुनौतियाँ:

  • दोहरी मार: सामान्य वर्ग के गरीब परिवार को जातिगत आरक्षण का लाभ नहीं मिलता और आर्थिक पिछड़ेपन के कारण वह पहले से ही संघर्ष कर रहा होता है। ईडब्ल्यूएस आरक्षण की कागजी औपचारिकताएँ और जटिल मानदंड, इस वर्ग के वास्तविक गरीब को अक्सर बाहर कर देते हैं।
  • मेरिट का दमन: सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ऊँची कट-ऑफ के कारण, सामान्य वर्ग के प्रतिभाशाली छात्रों को अक्सर आरक्षित वर्ग के कम अंक वाले छात्रों की तुलना में बाहर बैठना पड़ता है। यह योग्यता (Merit) को हतोत्साहित करता है और छात्रों में गहन निराशा पैदा करता है।
  • बढ़ता आर्थिक दबाव: नौकरियों में अवसर कम होने के कारण सामान्य वर्ग के युवाओं पर रोज़गार का दबाव बढ़ता है। इससे परिवारों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है, और कई युवा मजबूरन कम वेतन वाली निजी नौकरियों या यहाँ तक कि संगठित अपराध की ओर भी मुड़ जाते हैं, जिससे सामाजिक संतुलन बिगड़ता है।
  • सामाजिक समरसता पर सवाल: जब एक ही परीक्षा में एक वर्ग 100 में 90 अंक लाकर भी निराश हो और दूसरा वर्ग 70 अंक लाकर भी नौकरी पा जाए, तो यह न केवल व्यक्ति विशेष, बल्कि पूरे समाज में एक विभाजनकारी रेखा खींचता है।

निष्कर्ष: सामान्य वर्ग का यह आंदोलन केवल आरक्षण माँगने का नहीं है। यह समान अवसर और आर्थिक न्याय की संवैधानिक गारंटी सुनिश्चित करने का आह्वान है। सरकार को इन माँगों को केवल राजनीतिक आंदोलन के रूप में नहीं, बल्कि देश के सामाजिक-आर्थिक संतुलन को बनाए रखने की दिशा में एक गंभीर पहल के रूप में देखना चाहिए।

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