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जेएनयू की 'क्रांति' का काला सच: वैचारिक आजादी के नाम पर दैहिक शोषण और राष्ट्रवाद पर प्रहार

मासूम छात्रों को बरगलाकर कैसे 'लाल सलाम' के जाल में फंसाया जाता है? पढ़िए 'लव, सेक्स और धोखे' की यह सनसनीखेज रिपोर्ट, जहाँ क्रांति का अंत गर्भपात और देश के खिलाफ नारों पर होता है।
  1. "वैचारिक आजादी के नाम पर युवाओं को संस्कारों से काटकर नशे और अवसाद के अंधेरे कुएं में धकेला जा रहा है।"
    "जल-जंगल-जमीन की बातें करने वाले आकाओं के बच्चे विदेशों में सेटल हैं, और यहाँ गरीब छात्रों के हाथ में पत्थर थमा दिए गए हैं।"
    "स्त्री सशक्तिकरण का अर्थ शिक्षा और रोजगार है, न कि शराब, सिगरेट और देह की तथाकथित आजादी।"
    "जो लोग दुर्गा को मिथक और महिषासुर को नायक बताते हैं, वे दरअसल भारतीय संस्कृति की जड़ों में मठा डाल रहे हैं।"
    "ये पहले समाज में कुरीतियां फैलाते हैं, फिर उन्हीं कुरीतियों का हवाला देकर हिंदुओं और भारतीयों को नीचा दिखाते हैं।"

नई दिल्ली: देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक जेएनयू अक्सर अपनी शैक्षणिक उपलब्धियों से ज्यादा अपने राजनीतिक विवादों के लिए चर्चा में रहता है। 'फोकट' की रिहाइश और सब्सिडी वाले खाने पर पलने वाली तथाकथित 'क्रांति' का एक ऐसा चेहरा भी है, जिसे अक्सर बौद्धिक आजादी के नकाब के पीछे छिपा दिया जाता है। आज हम विश्लेषण करेंगे कि कैसे प्रगतिशीलता के नाम पर मासूम छात्रों, विशेषकर छात्राओं को मानसिक और शारीरिक रूप से शोषित किया जाता है।

वैचारिक 'ब्रेनवॉश' का खेल कहानी अक्सर 'स्वरा' जैसी सीधी-सादी लड़कियों से शुरू होती है, जो मध्यमवर्गीय परिवारों से बड़े सपने लेकर यूनिवर्सिटी आती हैं। लेकिन यहाँ उनका सामना होता है उन स्वयंभू क्रांतिकारियों से, जिनके लिए फटे कपड़े, बेतरतीब दाढ़ी और सिगरेट का धुआं ही 'बौद्धिक होने' की निशानी है। ये लोग पहले छात्रों के मन में उनके संस्कारों, परिवार और धर्म के प्रति हीन भावना भरते हैं। माता-पिता के संस्कारों को 'मानसिक गुलामी' और नमस्ते को 'संघी हिप्पोक्रेसी' बताकर खारिज कर दिया जाता है।

आजादी के नाम पर कुरीतियों का प्रसार हैरानी की बात यह है कि जो वामपंथी कामरेड जल-जंगल-जमीन की बात करते हैं, उनके आकाओं के बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं, लेकिन यहाँ गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चों को मोहरा बनाया जाता है। 'देह की आजादी' और 'पितृसत्ता के विरोध' के नाम पर शराब, सिगरेट और नशाखोरी को ग्लैमराइज किया जाता है। छात्राओं को यह पाठ पढ़ाया जाता है कि शराब पीना और यौन स्वच्छंदता ही 'स्त्री सशक्तिकरण' है।

धर्म और संस्कृति का अपमान इस नशामिश्रित क्रांति का अगला चरण भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म का अपमान होता है। दुर्गा पूजा के बजाय महिषासुर की पूजा, बीफ पार्टी का आयोजन और अफजल गुरु या याकूब मेमन जैसे आतंकवादियों के समर्थन में मार्च निकालना इनकी दिनचर्या बन जाती है। 'स्वरा' जैसी लड़कियां, जो कभी मंदिर जाने में सुकून पाती थीं, उन्हें इतना भ्रमित कर दिया जाता है कि वे अपने ही धर्म को अफीम और अपने ही देश को दुश्मन मानने लगती हैं।

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शोषण और अंत में धोखा इस पूरी प्रक्रिया का सबसे घिनौना पहलू है—यौन शोषण। 'क्रांति' की आड़ में कामरेड अपनी हवस पूरी करते हैं। जब बात जिम्मेदारी की आती है, जब बात शादी की आती है, तो वही क्रांतिकारी, जो कल तक जातिवाद के खिलाफ लड़ रहे थे, अचानक अपनी 'जाति' और 'परिवार' का हवाला देकर पीछे हट जाते हैं। नतीजा होता है—अवसाद, गर्भपात और जीवन भर की कुंठा। जो क्रांतिकारी छात्र थे, वे बाद में कहीं सेटल होकर प्रोफेसर बन जाते हैं, लेकिन जिनका इस्तेमाल हुआ, वे हाथ में तख्तियां लिए "भारत की बर्बादी" के नारे लगाने के लिए छोड़ दिए जाते हैं।

निष्कर्ष: कुरीति फैलाकर समाज को बदनाम करने का षड्यंत्र यह पूरा तंत्र एक सोची-समझी साजिश के तहत काम करता है। ये तथाकथित बुद्धिजीवी पहले समाज में स्वच्छंदता (Promiscuity), नशा और परिवार विरोधी कुरीतियों को 'आजादी' बताकर फैलाते हैं। जब यह 'जहर' युवाओं को खोखला कर देता है, तो ये उसी कुरीति को मुद्दा बनाकर भारतीय संस्कृति और हिंदू समाज को पिछड़ा और दकियानूसी साबित करने की कोशिश करते हैं। यह केवल राजनीति नहीं, बल्कि भारत की अस्मिता के साथ एक खिलवाड़ है।

📰 YHT24x7NEWS स्पेशल रिपोर्ट

JNU की ‘क्रांति’ के पीछे की काली हकीकत: वैचारिक आज़ादी से लेकर देहिक आज़ादी तक, एक छात्रा की दर्दनाक कहानी

(स्पेशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट – ज NU में ‘क्रांति’ के नाम पर चल रहे षडयंत्र पर बड़ा खुलासा)

दिल्ली के मशहूर जेएनयू कैंपस में अकसर ‘क्रांति’, ‘स्वतंत्रता’, ‘जल-जंगल-जमीन’, ‘स्त्री मुक्ति’ जैसे नारे हवा में गूंजते हैं। लेकिन सवाल यह है कि…

क्या यह क्रांति सच में समाज बदलने निकली है, या फिर युवा छात्र-छात्राओं को भटकाने का एक सुनियोजित खेल है?

हाल ही में सामने आई कहानी—एक छात्रा स्वरा और स्वयंभू ‘क्रांतिकारी’ कामरेड की—उस अंधेरी दुनिया का सच उजागर करती है, जिस पर वर्षों से पर्दा डाला जाता रहा है।

🔴 कहानी का सार: विचारधारा के नाम पर देह–शोषण!

स्वरा, एक सामान्य किसान परिवार की बेटी… सपनों के साथ JNU पढ़ने पहुँची।

लेकिन वहाँ उसकी मुलाकात एक ऐसे वामपंथी ‘कामरेड’ से हुई,

जो—

✔ क्रांति के नाम पर शराब पिलाता था

✔ सिगरेट और नशे को “विचारधारा की आज़ादी” बताता था

✔ मंदिर जाने पर रोक, लेकिन ‘बीफ पार्टी’ को जरूरी बताता था

✔ दुर्गा पूजा मिथक कहकर रोकता, लेकिन ‘महिषासुर पूजा’ करवाता

✔ चे, माओ, लेनिन के नाम पर छात्राओं को ब्रा उतारने तक का दबाव बनाता

✔ स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर शारीरिक संबंध बनाने को “क्रांति” बताता

✔ और अंत में… गर्भवती होने पर उसे छोड़कर अपनी जाति में शादी कर लेता है!

यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि वामपंथी गैंग की सालों पुरानी फॉर्मूला स्क्रिप्ट है।

जेएनयू में 1995 में भी यही माहौल था — पिल्स, कंडोम, नशा और ‘क्रांति’ का खेल

🔥 जेएनयू—जहां क्रांति सिर्फ हॉस्टल रूम में खत्म हो जाती है

कभी छात्र आंदोलन और शोध का गढ़ रहा JNU

अब—

✖ टुकड़े-टुकड़े गैंग

✖ भारत विरोधी नारे

✖ फ्री होस्टल + फ्री खाना

✖ सोशियोलॉजी में लिपटी अराजकता

✖ बीफ पार्टी—किस ऑफ लव—अफजल गुरू जिंदाबाद

✖ और अब ‘स्त्री मुक्ति’ के नाम पर अनैतिकता

का नया सेंटर बन चुका है।

कहानी की आख़िर में स्वरा चिल्लाती है—

“भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी…”

यही नारा इन कैंपस गैंग की असली पहचान है।

JNU मॉडल—कितने युवाओं का भविष्य बर्बाद?

ये लोग—

▶ न पढ़ते हैं

▶ न पढ़ने देते हैं

▶ दिन में आंदोलन, रात में नशा

▶ और जब लड़की प्रेग्नेंट…

तो ‘बुर्जुआ समाज’, ‘जाति’, ‘परिवार’ का बहाना बनाकर भाग जाते हैं।

YHT24x7NEWS की अपील

देश को भविष्य के Creators, Researchers, Teachers, Doctors, Administrators चाहिए…

न कि नशेड़ी, वामपंथी गैंग बनाकर भारत तोड़ने वाले लोग

इसी उद्देश्य से YHT24x7NEWS

विद्यार्थी सम्मान समारोह का आयोजन कर रहा है।

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जेएनयू की 'क्रांति' का काला सच: वैचारिक आजादी के नाम पर दैहिक शोषण और राष्ट्रवाद पर प्रहार
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