केरल नंन दुष्कर्म कांड कोर्ट रूम में आवक लोग पूछते रहे हैं यह सही है क्या ?
3 साल में 13 दुष्कर्म 39 की गवाही कोई मुखड़ा नहीं आरोपी बिशप फ्रेंको बरी
पीड़ित के सहयोगी ने कहा लगता है अमीर रसूखदार कुछ भी कर सकता है
सुप्रीम कोर्ट के जज ने एक बार कहा था की न्याय व्यवस्था अमीरों की गुलाम हो गई है इस घटना से तो यही साबित हो रहा है

केरल नंन दुष्कर्म कांड कोर्ट रूम में आवक लोग पूछते रहे हैं यह सही है क्या ?
केरल में नन के साथ हुए दुष्कर्म मामले में हाल ही में अदालत का निर्णय सभी को चौंका देने वाला रहा है। यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में न्याय व्यवस्था की स्थिति पर भी गंभीर प्रश्न उठाता है।
तीन वर्षों में 13 बार दुष्कर्म के आरोपी कैथोलिक बिशप फ्रैंको मुलकल को अदालत ने बरी कर दिया है। यह निर्णय सुनकर पीड़ित के सहयोगियों और समर्थकों में निराशा और आक्रोश की लहर दौड़ गई। उनका मानना है कि यह घटना यह दर्शाती है कि प्रभावशाली और धनवान लोग कानून के दायरे से बाहर हैं और वे अपनी स्थिति का लाभ उठाकर न्याय से बच सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने पूर्व में यह टिप्पणी की थी कि न्याय व्यवस्था अमीरों के प्रभाव में आ चुकी है, और इस मामले ने इस बात को और स्पष्ट कर दिया है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह दर्शाता है कि समाज में समानता और न्याय की अवधारणा कितनी कमजोर हो चुकी है।
शुक्रवार को तामिलनाडु जिला कोर्ट में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे, जहां अतिरिक्त जिला जज जो राम कुमार ने बिशप को बरी करने का निर्णय सुनाया। इस निर्णय को सुनकर उपस्थित लोग एक-दूसरे से यह पूछते रहे कि क्या यह सच है। पीड़ित और उनके समर्थक इस फैसले से अत्यंत निराश हैं, लेकिन उन्होंने आशा व्यक्त की है कि वे अंततः न्याय प्राप्त करेंगे।
विशेष जांच दल ने 2019 में 2000 पन्नों का आरोप पत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें कई गवाहों के बयान और दस्तावेज शामिल थे। सुनवाई के दौरान 39 गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे, जो इस मामले की गंभीरता को दर्शाते हैं।
जांच टीम के प्रमुख एस हरिशंकर ने इस निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है और कहा है कि यह न्याय व्यवस्था के लिए एक बड़ा धक्का है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने भी इस फैसले पर गहरी चिंता व्यक्त की है, यह कहते हुए कि यह निर्णय महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है।
यह मामला कैथोलिक चर्च के इतिहास में पहला अवसर है जब किसी बिशप पर दुष्कर्म का आरोप लगाया गया। पीड़िता ने 2018 में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि बिशप ने उन्हें 2014 से 2016 के बीच 13 बार दुष्कर्म का शिकार बनाया।
इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि क्या न्याय व्यवस्था में भेदभाव हो रहा है, विशेषकर जब हिंदू संत आसाराम बापू के मामले में एक भी गवाह पेश नहीं हुआ, जबकि बिशप के खिलाफ इतने गवाहों के बावजूद उन्हें बरी कर दिया गया। यह स्थिति समाज में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव की ओर इशारा करती है, जो कि एक लोकतांत्रिक समाज के लिए चिंताजनक है।
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