देश में एक बार फिर से लोकतंत्र, संस्कृति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर बहस छिड़ गई है। मामला जुड़ा है भारत के महान योद्धा राणा सांगा से, जिनके सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए करणी सेना ने विरोध प्रदर्शन किया। लेकिन यह प्रदर्शन एक गंभीर विवाद में तब्दील हो गया।
सवाल यह है कि क्या भारत में अब विरोध करने का अधिकार भी सीमित कर दिया गया है?
विवाद की शुरुआत
मामला तब गरमाया जब समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रामजीलाल सुमन द्वारा राणा सांगा के संबंध में एक कथित आपत्तिजनक टिप्पणी की गई। इस टिप्पणी से राजपूत समाज और करणी सेना में आक्रोश फैल गया।
करणी सेना ने इसका विरोध करने और सांसद से माफी मांगने की मांग को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन की घोषणा की।
विरोध प्रदर्शन के लिए बाकायदा प्रशासन से अनुमति ली गई थी और करणी सैनिक बड़ी संख्या में सांसद रामजीलाल सुमन के आवास के बाहर इकट्ठा हुए।
प्रदर्शन के दौरान क्या हुआ?
प्रदर्शन कर रहे करणी सैनिकों के अनुसार, वे शांतिपूर्ण ढंग से नारेबाजी और ज्ञापन देने के लिए पहुंचे थे। लेकिन तभी सांसद के घर की छत से कुछ लोग जो पहले से मौजूद थे, उन्होंने करणी सैनिकों पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया।
वीडियो और तस्वीरें इस बात की पुष्टि करती हैं कि छत से लगातार पत्थर फेंके जा रहे थे। इस हमले में कई करणी सैनिक घायल हो गए।
पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल
पत्थरबाजी से बचने की कोशिश कर रहे करणी सैनिकों पर बाद में पुलिस ने भी बर्बरता दिखाई। कई वीडियो सामने आए हैं जिनमें साफ देखा जा सकता है कि निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर पुलिसवालों ने लाठियाँ बरसाईं।
प्रदर्शनकारी आरोप लगा रहे हैं कि पुलिस ने पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर, बिना उकसावे के बर्बर लाठीचार्ज किया।
एक वीडियो में तो यह तक देखा जा सकता है कि एक अकेले करणी सैनिक पर 10 से ज्यादा पुलिस वाले लाठियां बरसा रहे हैं।
दोहरा मापदंड या पक्षपात?
प्रश्न यह भी उठता है कि जब देश में कई बार बड़े-बड़े आंदोलन हुए, महीनों सड़कों पर कब्जा रहा, पुलिसवालों पर हमले हुए, हाथ तक काटे गए, तब भी इतनी कठोर कार्रवाई नहीं हुई।
तो फिर करणी सैनिकों पर यह अत्यधिक बल प्रयोग क्यों किया गया?
क्या यह सिर्फ इसलिए क्योंकि वे राणा सांगा की अस्मिता और अपने समाज के सम्मान के लिए आवाज उठा रहे थे?
करणी सेना और राजपूत समाज की प्रतिक्रिया
करणी सेना ने इस पूरे घटनाक्रम को लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया है। उनका कहना है कि
“जब देश में किसान आंदोलन, शाहीन बाग और अन्य प्रदर्शनों में सालों तक आंदोलन हुआ, तब किसी पर ऐसा लाठीचार्ज नहीं हुआ। तो फिर करणी सेना पर क्यों? क्या हम इस देश के नागरिक नहीं?”
राजपूत समाज के कई संगठनों ने इस कार्रवाई की निंदा की है और कहा है कि राणा सांगा जैसे राष्ट्रीय नायक का अपमान किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
जनता के मन में उठ रहे सवाल
- क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब पक्षपाती हो गई है?
- क्या विरोध प्रदर्शन का अधिकार सिर्फ कुछ खास समूहों को ही दिया जाएगा?
- राणा सांगा के वंशजों और उनके सम्मान के लिए उठी आवाज को दबाने का प्रयास क्यों किया गया?
- पुलिस की भूमिका निष्पक्ष थी या राजनीतिक दबाव में?
- क्या राजपूत समाज के साथ योजनाबद्ध तरीके से भेदभाव हो रहा है?
- क्या यह लोकतंत्र पर सीधा हमला नहीं है?
आखिरी बात
यह विवाद सिर्फ एक संगठन का नहीं है, बल्कि यह भारत की उस आत्मा से जुड़ा हुआ है जिसे राणा सांगा और जैसे लाखों वीरों ने सींचा है।
अगर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना भी गुनाह है, तो फिर लोकतंत्र की परिभाषा पर गहराई से विचार करने की जरूरत है।